चले कदम
अनमने से
हाँ ..,
थके-थके से
ढूंढ रहे
बारी-बारी ..
इक चौबारा
कोई गाँव किनारा
जहाँ दोबारा
फिर कदम चलें
कुछ मद्धम
कुछ तेज
कभी रुकें ठिठकें संभलें
कभी गति टालें फिर यों समझें
क्षण भंगुर भोले भाले
नभ के बादल कारे-कारे
बिजुरी संग सावन सिंगार करे
बैंगनी-नारंगी भर डारी-डारी
झूले हरियाली बन मतवारी
छूके पवन करे नृत्य गगन
मन खो गाये
मत जा, आ री आ री
कब बोल उठे
मैं हारी हारी ...
अनमने से
हाँ ..,
थके-थके से
ढूंढ रहे
बारी-बारी ..
इक चौबारा
कोई गाँव किनारा
जहाँ दोबारा
फिर कदम चलें
कुछ मद्धम
कुछ तेज
कभी रुकें ठिठकें संभलें
कभी गति टालें फिर यों समझें
क्षण भंगुर भोले भाले
नभ के बादल कारे-कारे
बिजुरी संग सावन सिंगार करे
बैंगनी-नारंगी भर डारी-डारी
झूले हरियाली बन मतवारी
छूके पवन करे नृत्य गगन
मन खो गाये
मत जा, आ री आ री
कब बोल उठे
मैं हारी हारी ...
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