'संग'
ज़िन्दगी हमें सिखा न सकी
संग हमारे मुस्कुरा न सकी
दूर इठलाती हवा ने मानो
रंगों की बारिश को यूँ मोड़ा
हंसी ठिठक कर मायूस
बरबस रुलाई से पूछ बैठी
"क्या ये दुःख है ?
तब मुझे चलना होगा.. "
इस पर रुलाई हंसी की
बांह पकड़ कर बोली
चल दोनों संग चलते हैं
दुःख या सुख
तीव्रता दोनों की बर्दाश्त
हो जाएगी...
ज़िन्दगी हमें सिखा न सकी
संग हमारे मुस्कुरा न सकी
दूर इठलाती हवा ने मानो
रंगों की बारिश को यूँ मोड़ा
हंसी ठिठक कर मायूस
बरबस रुलाई से पूछ बैठी
"क्या ये दुःख है ?
तब मुझे चलना होगा.. "
इस पर रुलाई हंसी की
बांह पकड़ कर बोली
चल दोनों संग चलते हैं
दुःख या सुख
तीव्रता दोनों की बर्दाश्त
हो जाएगी...
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